गाय को राष्ट्र-माता का दर्जा क्या उसे बचा पायेगा?

in #hindi6 years ago (edited)

पिछले बुधवार को देश के उत्तराखंड राज्य की विधानसभा ने गौ को राष्ट्र-माता का दर्जा प्रदान करने संबंधित प्रस्ताव को ध्वनि मत से पारित कर दिया। इससे उत्तराखंड गाय को राष्ट्र-माता का दर्जा देने वाला प्रथम राज्य बन गया है। अब प्रस्ताव मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास गया है।

किंतु बड़ा प्रश्न यह है कि इससे गाय का भला होगा या सरकार का?


गाय को मोहरा बना कर भोली-भाली जनता को भ्रमित कर सहानुभूति जुटाने की यह घिनौनी राजनीति खेली जा रही है। उतराखंड राज्य में गौ-वध के विरोध में पहले से ही कानून है। किंतु दुर्भाग्य की बात है कि इसके बावजूद गौ-हत्या नहीं रोकी जा सकी है।

सदन में प्रस्ताव पेश करने वाली पशुपालन राज्य-मंत्री रेखा आर्य की सोच से ही स्पष्ट हो जाता है कि वे गायों को एक सजीव प्राणी भी समझती है या नहीं। उन्होंने गाय को राष्ट्र-माता का दर्जा दिए जाने के पीछे उसकी मानव के लिए अधिक उपयोगिता को आधार बताया। उन्होंने तो मनुष्य के लिए उसके दूध की महिमा का बखान तक कर डाला! एक पशु-पालन विभाग की मंत्री से और क्या अपेक्षा की जा सकती है?

पशु एक स्वतंत्र प्राणी है या मानव की संपत्ति?


पशु-पालन का मूल आधार ही जानवरों को संसाधन समझ उनका दोहन करना है। किस प्रकार उससे अधिक से अधिक लाभ अर्जित किया जाये, यही उसका उद्देश्य होता है।

हालाँकि सदन में यह संकल्प सर्व-सम्मति से पारित हुआ, फिर भी नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने सरकार पर गौ-सरंक्षण के कड़े कानून के बावजूद गायों पर हो रहे अत्याचार और क़त्ल का मामला उठाया। उन्होंने आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या की ओर भी ध्यान आकृषित किया। सिर्फ सदन में संकल्प पारित करने और राष्ट्र-माता का दर्जा देने से कोई गाय की रक्षा नहीं हो सकती!

गाय की रक्षा कैसे हो, ये बड़ा भीष्म-सवाल है। आम-जन भी इस मूल समस्या को समझना नहीं चाहते हैं और गाय के साथ झूठी सहानुभूति दिखाने का ढोंग करते रहते हैं, तो फिर राजनेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है?

जब तक पशुओं को "धन" या "संपत्ति" या "संसाधन" के रूप में देखा जाता रहेगा, वह हमेशा मानव द्वारा प्रताड़ित किया जाता रहेगा। मानव को अपने स्वार्थ हेतु पशुओं को दास बनाने की वृत्ति ही सारी समस्या की जड़ है।

डेयरी उद्योग को प्रतिबंधित किये बिना गौ-वध नहीं रोका जा सकता है


क्या आवश्यकता है मानव को पशुओं से दूध प्राप्त करने की? क्या वे अपनी माँ का दूध नहीं पी सकते? क्यों जबरन गाय को बारम्बार गर्भवती कर बछड़े पैदा किये जाते हैं? और उन्हें उसके दूध से वंचित कर उन्हें आवारा भूखा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है अथवा कत्लखाने बेच दिया जाता है?

जब नेता-प्रतिप्रक्ष ने इन मासूम बछड़ों के भूखे मरने का बुनियादी सवाल उठाया तो पशु-पालन सचिव ने सरकार के बचाव में बड़ी ही हास्यास्पद बात करी। उन्होंने कहा कि पिछले माह से सरकार ने गायों को चयनित वीर्य से गर्भवती करना शुरू कर दिया है जिससे लिंग पर नियंत्रण हो जायेगा और बछड़े पैदा ही नहीं होंगे, सभी बछिया ही पैदा होगी। इससे आवारा पशुओं और क़त्ल में काफी कमी आ जाएगी।

गौर करें, कि वो आवारा पशुओं और क़त्ल में सिर्फ कमी लाने तक ही बात कर सकते हैं। गौ-वध पर सम्पूर्ण रोक असंभव है। जब तक हम उसके दूध के कायल रहेंगे, वो हमारे अत्याचार और शोषण की पात्र बनी रहेगी। चाहे फिर आप उसको माता समझ कर दुराचार करवाएं या फिर बुढापे में "संसाधन" की आयु समाप्त होने की अवधारणा माने, गौ हमेशा दयनीय अवस्था में ही रहेगी।

दूध छोड़, दया जोड़!

सन्दर्भ:

https://inextlive.jagran.com/dehradun-uttarakhand-assembly-declare-cow-as-rashtra-mata-201809200033

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हमारे देश का कुछ नही हो सकता ।हमारे देश के जो नेता है वो सबसे ज्यादा भ्रष्टचार में सबसे ज्यादा उपलब्धि ही।उनको कोई मतलब नही है ।कोई जिये या मरे।जब तक ऐसे नेता रहेंगे देश कभी नही आगे बढ़ सकता।@आशु जी की आपकी पोस्ट बहुत अच्छी है।जिससे लोगो को कुछ सीखने को मिलेगा।

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बिलकुल भी निराश होने की दशा भी नहीं है। लोकतंत्र में राजनेता और राजनितिक विचारधारा आम-जन की ही औसत सोच का आईना होती है। यदि राजनितिक स्तर पर भी कोई परिवर्तन लाना हो तो अव्वल तो हमें आम-जन को शिक्षित और जागृत करना होता है।

ठीक इसी प्रकार, जब समुचित जन-जागृति से आम-जन को रूढ़िवादी विचारधारा से ऊपर उठने पर , जब निरीह पशुओं की दयनीय अवस्था का मूल कारण समझ आएगा तो फिर राजनेताओं को समझाना तो बड़ा आसान हो जाएगा। लेकिन जब तक हम नहीं समझेंगे, राजनेताओं से आशा करना व्यर्थ है।

बहुत अच्छी बात है यह तोह गाय हमारी राष्ट्र-माता है गाय के गोबर से खाद बनती है गो मूत्र और गोबर का उपयोग पूजा में भी होता है गाय को माँ समान दर्जा दिया जाता है क्योंकि उसका दूध माँ के दूध वाले ही गुण रखता है। बस मेरी नजर में जो गौ-वध करे उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए और गोहत्या में रोक लगानी चाहिए धन्यवाद आपकी यह पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा

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शायद आपने पूरी पोस्ट ध्यान से नहीं पढ़ी!

समस्या यही है कि हम गाय को अपने उपयोग की वस्तु समझते हैं। हमें उससे दूध, चमड़ा, गोबर, खाद, दवा, गौमूत्र इत्यादि सभी कुछ चाहिए और फिर हम कहते हैं कि गो-वध नहीं होना चाहिए और उसे भी अन्य जीवों की तरह उनमुक्त जीवन जीने देना चाहिए! यह असंभव कल्पना है।

यह भी बहुत बड़ी गलत-फहमी है कि गाय का दूध माँ के दूध वाले ही गुण का होता है।कुदरत ने हर प्रजाति की माँ का दूध उसके अपने बच्चे के लिए विशिष्ट रूप से बनाया है। सभी का संघटन उस बच्चे के विकास के लिए उसी अनुरूप होता है। उदाहरणार्थ: एक गाय का नवजात बच्चा जन्म के समय मात्र बीस किलो का होता है लेकिन वयस्क होने पर पाँच-छ: सौ किलो का हो जाता है तो गाय का दूध उसके बच्चे का तद्नुसार समुचित विकास हो, उसी अनुरूप बनता है। वह मानव के लिए किसी भी दृष्टि से अनुकूल नहीं है।

अगर आप गौ-वध करने वालों को कड़ी सजा के पक्षधर हैं तो इतना समझ लीजिये कि प्रत्येक गौ-हत्या में डेयरी उत्पादों के ग्राहकों का भी उतना ही योगदान है। और आज लगभग सारा देश मवेशियों का दूध पी रहा है ....सभी उन पशुओं के गुनहगार हैं। कृपया थोडा गौर से विचारें! धन्यवाद!

में आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं मेने यह पोस्ट पूरी नही पढ़ी थी लेकिन दोस्त जैसा आपने कहा कि उनमुक्त कर देना यह कार्य तो सरकार के हाथ मे है और सरकार ऐसा नही करेगी सरकार सिर्फ वो ही काम करती है जिससे उसे फायदा हो नुकसान नही
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सरकार हमेशा लोकहित में , बहु-संख्यक जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करती है। उस कार्य से वाकई किसी को लाभ अथवा हानि होती हो उस तथ्य से उसका कोई सरोकार नहीं होता। अगर उस कार्य के द्वारा सरकार लोगों की भावनाओं को जीतने में समर्थ हो गई तो समझो कि वो कार्य सफल हो गया। बस, सभी लोकतांत्रिक सरकारों का इतना ही उद्देश्य होता है, इस बात को पहले समझें।

दूसरे, सरकार के हाथ में तो कत्लखानों पर प्रतिबंध लगाना भी नहीं है क्योंकि बहुसंख्यक लोग गाय का दूध पीने के पक्ष में हैं। और मौजूदा परिस्थितियों में, दूध के व्यवसाय को जारी रखने के लिए गाय का क़त्ल आवश्यक है। अतः लोगों कि सहानुभूति लेने के लिए सरकार कुछ राज्यों में कत्लखानों पर वैधानिक प्रतिबंध लगाने का ढोंग करती है परंतु अवैधानिक क़त्ल को जानबूझकर बंद नहीं करती। क्योंकि उसे पता है कि डेयरी उद्योग के पोषण के लिए कत्लखाने आवश्यक हैं। और लोग दूध का उत्पादन बढ़ाने की मांग करते रहते हैं। बेचारी सरकार तो विवश है!

जब तक लोग दूध, दही, घी, पनीर, मावा, आइसक्रीम इत्यादि से तौबा नहीं करेंगे, तब तक सरकार की यह क़त्लखानों की दोहरी नीति चलती रहेगी। अतः पहल जनता को अपनी आदतों में परिवर्तन कर ही करनी होगी।

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