एक क़िता ....
बुग्ज़ो-नफ़रत अब यहाँ तक आ गए ।
तीर जितने थे कमाँ तक आ गए ।
भूल बैठे गुफ़्त की तहज़ीब भी ,
गिरते-गिरते हम कहाँ तक आ गए ।
राकेश 'नादान'* item
एक क़िता ....
बुग्ज़ो-नफ़रत अब यहाँ तक आ गए ।
तीर जितने थे कमाँ तक आ गए ।
भूल बैठे गुफ़्त की तहज़ीब भी ,
गिरते-गिरते हम कहाँ तक आ गए ।
राकेश 'नादान'* item
Vah vah
हार्दिक आभार भाई