क़िता # 1

एक क़िता ....

बुग्ज़ो-नफ़रत अब यहाँ तक आ गए ।
तीर जितने थे कमाँ तक आ गए ।

भूल बैठे गुफ़्त की तहज़ीब भी ,
गिरते-गिरते हम कहाँ तक आ गए ।

                            राकेश 'नादान'* item
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Vah vah

हार्दिक आभार भाई