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क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

भय बिना प्रीत कहाँ होती है, और कलि युग में तोह बिलकुल नहीं, यही यथार्थ है

🙏