जिनवाणी : जीवन और आचरण -- भाग # २

in #life6 years ago

जिनवाणी : जीवन और आचरण -- भाग # २

अब हम पिछली पोस्ट से आगे की बात प्रारम्भ करते है ।

मानव पंचेन्द्रिय जीव है । उसकी पांचो इन्द्रियों के विषय अलग-अलग हैं । इन विषयों से सावधान रहना चाहिए । इन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए । जो भी मानव विषयों के अधीन हो जाता है वह महान दु:खों का उपार्जन करता है । उत्तराध्ययन सूत्र में आता है कि –
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“खाणि अनत्थाणं उ काम भोगा ।”

काम भोग अनर्थों की खान है ।

इन पांचों इन्द्रियों में किसी एक भी इन्द्रिय के वशीभूत हो जाने पर जीवन का पतन प्रारम्भ हो जाता है । जीवन का पतन एक बार प्रारम्भ हो गया तो फिर उससे उद्धार पाना यदि असम्भव नहीं तो दुस्साध्य तो अवश्य ही है । अनेकानेक कष्ठ उठाकर ही पुन: जीवन को शुद्धता की ओर लाया जा सकता है । अत: विवेकवान व्यक्ति पहले से ही क्यों न चेत जाए ? वह विनाश के मार्ग पर चले ही क्यों ? जो हतभागे ऐसे विनाशकारी मार्ग पर चले उनकी क्या दशा हुई, यह देखिए –

एक महानगरी थी – चम्पा । सुख समृद्धि तथा वैभव वहां अथाह था । किसी भी वस्तु का अभाव न था । वहां का राजा जितशत्रु था तथा उसकी रानी सुकुमालिका थी । राजा दुर्भाग्य से विषयों में आसक्त हो गया और परिणामत: उसे राज्य भ्रष्ट होकर दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं । अमरावती से होड़ लेने वाली चम्पा नगरी का राजा राह का भिखारी बन गया ।

घटना इस प्रकार घटित हुई कि राजा जितशत्रु दिन-रात विषय-विकारों में ही लवलीन हो गया । वह अपने कर्तव्य को भी भूल गया । राज्य-कार्य की और से उदासीन होकर वह अहर्निश भोग-विलास में ही रत रहने लगा । ऐसी स्थिति में राज्य कैसे चले ? प्रजा का सरंक्षण कैसे हो ? बाड़ ही खेत को खाने लगे तो खेत का क्या हो ? राजा ही दुराचरण में डूब जाए तो प्रजा क्या करे ? उस पर कैसा प्रभाव पड़े ?

अस्तु मंत्रिमंडल ने राजा को सावधान करने का प्रयत्न किया – “राजन ! विचार कीजिए ।”

किन्तु कामान्ध और मोहान्ध राजा कब सुनने वाला था ? हितकर वचन उसे विष-से लगते । उसने कुछ नहीं विचारा । किसी की नहीं सुनी । कहा गया है न –

“कामातुरा न भयं न लज्जा ।”

कामातुर व्यक्ति को न भय होता है न ही लज्जा । राजा जितशत्रु भी अन्धा बन रहा था । उसे न लज्जा आई, न कोई विचार ।

परिणामत: युवराज तथा मंत्रियों ने विचार-विमर्श कर निश्चय किया कि राजा-रानी को रात्रि के समय निद्रावस्था में वन में ले जाकर छोड़ दिया जाए । अन्य कोई मार्ग था भी नहीं ।

यही किया गया । राजा-रानी घोर, गहन अटवी में छोड़ दिए गए । राज्य भार युवराज ने सम्भाल लिया ।

प्रातःकाल हुआ । निंद्रा भंग होने पर राजा-रानी ने स्वयं को राज-प्रासाद की सुकोमल शय्या के स्थान पर घन अरण्य की नंगी धरती पर पड़ा पाया । वे समझ गए कि चिड़िया खेत चुग गई । अब पछताना ही पछताना शेष है, और उससे कुछ होने वाला नहीं ।

किसी शरण की खोज में वे आगे बढ़े । किन्तु फूलों पर ही चरण धरने वाली रानी उस कंटकाकीर्ण मार्ग पर नंगे पैर कितना चल सकती थी । उसके पैर लहूलुहान हो गए । थकान से वह चूर-चूर हो गई । प्यास से विरल हो गई । क्षुधा से उसकी स्थिति दयनीय बन गई । कामान्ध राजा ने रानी की प्यास बुझाने के लिए अपनी बाहं से रक्त निकालकर उसे पिलाया । भूख मिटाने दे लिए अपनी जांघ का मांस काटकर उसे खिलाया ।

इन भीषण, पाशविक, घोर कष्ट-प्रदायिनी परिस्थितियों में येन-केन-प्रकारेण धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वे राजा-रानी अंतत: किसी नगरी में जा ही पहुँचे । वहां रानी के आभूषण बेचकर राजा ने कुछ धन जुटाया, रानी के तृषाक्षुधा को शान्त किया और फिर आजीविका चलाने के लिए एक मकान तथा दुकान किराये पर लेकर रहने लगा ।

महान चम्पानगरी का अधिपति छोटी-सी दुकान चलाने लगा । वह दिनभर दुकान पर रहता । रानी दिन भर अकेली पड़ी रहती । रात-दिन सैकड़ों सेवक-सेविकाओं से घिरी रहने वाली रानी का मन नहीं लगता । उसने एक दिन राजा से कहा –

“आप तो दिन-भर बाजार में रहते हैं । मैं अकेली पड़ी-पड़ी क्या करू ? मेरा मन नहीं लगता ।”

“कोई उपाय सोचेंगे, रानी !” कहकर राजा बाजार चला गया । मार्ग में उसे एक लंगड़ा व्यक्ति मिला । वह गीत गाता था, भीख मांगता था । राजा ने उसे सहज ही पूछ लिया – “तुम क्या करते तो, भाई ?”

“गीत गाता हूँ और भीख मांगकर गुजारा चलाता हूँ ।”

उसका स्वर मधुर था । राजा ने सोचा कि यदि यह दिनभर रानी के पास रहकर उसे मीठे-मीठे गीत सुनाया करे तो रानी का भी मन लग जाए । अत: उसने कहा –

“सुनो भाई, मेरे घर रहा करोगे? मेरी पत्नी अकेली रहती है । उसे गीत सुनाया करना । तुम्हारी आजीविका चलती रहेगी ।”

यदि अन्धे को दो आँखे चाहिए तो लंगड़े को इससे अधिक क्या चाहिए था ? वह तत्काल सहमत हो गया । लंगड़ा राजा के घर रहने लगा । राजा दुकान पर जाता । लंगड़ा रानी को मीठे गीत सुनाता । धीरे-धीरे उस लंगड़े गायक और वासना की मारी रानी में वासना-जन्य अनुरक्ति उत्पन्न हो गई । वे परस्पर विषय-भोग में लीन हो गए । किन्तु चोर के मन में शंका तो सदैव बनी ही रहती है । रानी भी शंकित रहने लगी कि यदि किसी दिन राजा को यह भेद ज्ञात तो गया तो वह प्राण ही ले लेगा । अत: उसने सोचा – न रहे बांस न बजे बांसुरी ।

उसने निश्चय कर लिया कि राजा को ही समाप्त कर देना चाहिए ।

क्या यह गतन की पराकाष्ठा नहीं है ? जब एक बार पतन प्रारम्भ हो जाता है तब फिर उसका अन्त कहां आएगा, यह कहा नहीं जा सकता ।

इससे आगे की बात अब हम अगली पोस्ट में करेंगे । तब तक आप लोग अपनी steeming कीजिए ।
इसी से जुडी पिछली पोस्ट का जुडाव है :- https://busy.org/@mehta/4adbj4

जीवन और आचरण Steeming

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मेहता दादा का हर पोस्ट एक बहुत महत्वपूर्ण है हमारे jibon के लिए,, मे अपके हर पोस्ट दिल से पढ़ता हू,, aur सोचता हू,, steemit में अनेसे हमए बहुत कुछ सीखने को मिला है, Wow @mehta sir बहुत अच्छे लगते हैं जब हम आपके आर्टिकल पोढता हू,, Ajj अपने जीवन और आचरण के बारेमे बहुत अच्छा बीसलेसान किया, app सही बोले हो, जिबन हमारे हाथ मे ही हे, हम अपने जीवन में सिर्फ खुदके लिए सोचते रहता हू,, जीवन का अर्थ अपने hume समझाया,, आचरण इंसान का पहचान, App अपनी जीवन काल में सबके साथ Kayse अचरण किया, एहि अपकी पहचान हे,, हमए तब bahut accha लगता है, जब हम अपके हिन्दी देख्ताहू,,, इसलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद @mehta sir

बहुत सही कहा @mehta जी। व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए ना कि खुद उनके वश में हो। मनुष्य की असीमित इच्छाये ही उसके पतन का कारण बन सकती है। आपकी पोस्ट बहुत ज्ञानवधर्क है। आप इसी तरह के पोस्ट लिखते रहिये। धन्यवाद 🙏

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is it number 3?
Here's zero to nine in Burmese, is it the same?
၀, ၁, ၂, ၃, ၄, ၅, ၆, ၇, ၈, ၉

No, this is not number 3. It is 'उ' can be called "uoo".
No this is not the same.

Yes, I also found out it's not the same. But, some numbers have similar pronunciation.
We also pronounce 0, 1, 3, 6, 10 similar to Hindi. Wonderful...
https://www.language-school-teachers.com/rte/rte/LessonView.asp?Id=106

जीवन और आचरण फुल और खुशबु की तरह है जैसे बिना खुश्बू वाले फुल का कोई महत्व नहीं होता उसी तरह आचरण हिन व्यक्ति का भी समाज में कोई महत्व नहीं होता।

hello please follow me

Screenshot_20180729-153141.pngScreenshot_20180729-153127.png pls help bro....@themarkymark down vote me..I lost reputation,sbd

Really love to read your posts. Your posts creats interest. Thanks for sharing such beautiful stories.

Namaskaar mehta sir !
sir ek doubt puchhna tha ki jo aapne bataya tha ki upvote karana hoga wo kya hame har post par karana hoga jab bhi hum post dalenge ya ek hi baar karana hoga ..............
or investment krke result milega ???
aap jarur reply dena main intzaar karunga !
namaskaar !!

I can say hindi but can not write hindi but i can not comment

I can say hindi
But can not write hindi but
I can not comment

                 - moniroy


I'm a bot. I detect haiku.

Great post!
Thanks for tasting the eden!

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###Regards, good luck

Hi @mehta... Nice pic ji like your blog

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And, the clothes the girls are wearing are also very similar. looks like burmese girl. :D

Steemit par hindi dekh kar acha lag raha hai Hindi ko aise platform par lane ka sochna Himmat ki baat hai great doing keep growing @mehta

सर कोई ऋण मुक्ति की पोस्ट भी .... बहत लॉग है भारत मुझे जो ऋण से बहत जयादा दुखी है और आपका उका कोई समाधान की पोस्ट करो

It is right jo vyakti apni indriyoko vash me rakta hai o jeevan me moha maya se dur rehata hai.

व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए ना कि खुद उनके वश में हो। मनुष्य की असीमित इच्छाये ही उसके पतन का कारण बन सकती है।

‌‌‌जीवन का सबसे अच्छा आचरण आपके पास है।

Hi bro I started following you and also upvoted your blog can you please upvote me ? I am new here it will helpy blog grow

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Bahut khoob likha ji.

wonderfull content keep go ahead,i like it

sir apki har post mai kuch na kuch naya hota hai, yaha sub jante hai ke hum agar ye panch indri ko control kar lenge to sara jivan safal ho jayega lakin koi yeh kosis nahi karta. jais hum kisi ki samsanyatra pe jate hai to lagta hai duniya bakar hai lakin jase hi hum regular life per ate hai to vahi chal kapat or dwash.

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इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि माता-पिता अपने जीवन में ऐसा आदर्श पेश करें जिसका अनुकरण कर उसका बच्चा खुद को गौरवान्वित महसूस कर सके। और इसके लिए सबसे जरूरी है शिक्षा। शिक्षा का महत्व समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण है। इसके बिना आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चे को सबसे पहले बाल विकास कक्षा में दाखिला दिलवाएँ। इसके अलावा माता-पिता को अपने बच्चे के साथ सदैव आदर्श व्यवहार करना चाहिए।

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