Nice thought.

in #prameshtyagi6 years ago

साधना मार्ग
यहाँ वेद का ऋषि कहता है, यौगिक ऋषि कहता है जो मानव साधना में परणित अर्थात् साधना करना चाहता है। साधना का पथ-दर्शन करना चाहता है वह मानव सब से प्रथम अहिंसा को अपनायें । अहिंसा का अभिप्राय क्या ? कि हम अहिंसा का अध्ययन करने वाले बनें। परन्तु अहिंसा अध्ययन क्या है ? बेटा! अहिंसा का जो आरम्भ होता है वह मनुष्य के ह्रदय से होता है।इसलिए यौगिक ऋषियों ने कहा है कि मानव को अपने ह्रदय को स्वच्छ , निर्मल और पवित्र बनाना है। परन्तु ह्रदय कैसे पवित्र होता है?
ह्रदय पवित्र उस काल में होता है जब मन पवित्र हो जाता है। मन कैसे पवित्र होता है?
मन उस काल में पवित्र होता है जब मन का शोधन किया जाए। मन का शोधन होगा अहिंसा का पालन करने से ।अहिंसा उसे कहते है जब मानव के मन, कर्म, वचन में भी अशुद्धता न आए। जब मानव के मन-कर्म-वचन में स्वच्छता पवित्रता आ जाएगी। तो ह्रदय बेटा! स्वतः पवित्र हो जायेगा । ह्रदय जब पवित्र होता है तब मन की आभा पर हमारा आधिपत्य हो जाता है। मन गति और विभाजन करता है। पूज्य श्रृंगी ऋषि ने कहा है कि संसार को यदि जानना है तो मन की गति को हमें उर्ध्व बनाना होगा और उसको स्थिर करना होगा। मन की गति स्थिर हुए बिना मानव योग सिद्ध नही बन सकता।
संसार में अनेक अनुसंधान वेत्ताओं ने अनुसंधान भी किया है और होता रहा है। परम्परा से होता रहा है। अपने पूज्यपाद गुरुओं और ऐसा ही अनेक ऋषियों का तथा प्रवाण आदि का जीवन प्राप्त होता है। तो ऋषियों के उन वाक्यों से सिद्ध होता है बेटा! कि उनका जीवन कितना महान था और वे कितने अनुसंधान-वेत्ता थे ? वे प्रत्येक आभा पर अपना नियंत्रण करते रहते थे।
आगे हम चर्चा करेंगे कि मन कैसे पवित्र होगा ?